Tuesday, March 1, 2022

Fantasy Sports (EXPLAINED)क्या है दुनिया भर में चर्चित फेंटेसी गेम्स? (English and Hindi)




 

 फैंटेसी खेल शब्द आज आपके लिए नया नहीं होगा आपने पिछले कुछ वर्षों में यह शब्द बहुत बार सुना होगा आप इसका वास्तविक अर्थ नहीं समझ पाए होंगे आज हम आपको इनसाइड प्रेस इंडिया के माध्यम से फेंटेसी खेल को  सरल भाषा में बताने जा रहे हैं,

The word fantasy sports will not be new to you today, you must have heard this word many times in the last few years, you may not have understood its real meaning, today we are going to tell you fantasy sports in simple language through Inside Press India.


 

 फेंटेसी खेल या रोटीसरी खेल या रोटो एक ऐसा माध्यम है जहां आप अपने मनपसंद खिलाड़ियों को उनके द्वारा किए गए पूर्व प्रदर्शन के आधार पर एक साथ रखते हैं और एक आभासी टीम का निर्माण करते हैं
 इस खेल में आपका खिलाड़ी वास्तविक जीवन में जितना बेहतर प्रदर्शन करेगा आपको उतने ही अंक प्राप्त होंगे

 Fantasy game or rotisserie game or roto is a medium where you put your favorite players together based on their past performances and build a virtual team.In this game the better your player performs in real life, the more points you will get.

 

  इस खेल में आप जीतने के लिए खिलाड़ियों को जोड़ने छोड़ने खरीदने और बेचने का व्यापार प्रबंधन करते हैं
 वैसे तो यह खेल 20 साल पुराना है लेकिन भारत में पिछले कुछ वर्षों से ही यह उभर कर सामने आया है वही अन्य देशों में काफी समय से फेंटेसी गेम खेले जा रहे हैं यूएस के प्रमुख फेंटेसी गेमों में फेंटेसी बेसबॉल और फेंटेसी ग्रीडीरॉड फुटबॉल है परंतु भारत में सबसे ज्यादा खेला जाने वाला फेंटेसी स्पोर्ट्स क्रिकेट है.

 In this game you manage the trading of buy and sell leaving adding players to win.Although this game is 20 years old, but it has emerged in India only for the last few years, the same fantasy games are being played in other countries for a long time. The most played fantasy sports in India is Cricket.

  पहले कुछ लोगों के द्वारा यह खेल एक सट्टे के रूप में जाना जाता था परंतु पेट्रोल कानूनों के आधार पर यह निर्धारित किया गया है कि फेंटेसी खेल सट्टे का खेल नहीं है

Earlier this game was known as a gambling by some people but on the basis of petrol laws it has been determined that fantasy game is not a gambling game.

 


History of Fantasy Sports:-

 फेंटेसी खेलों की शुरुआत 19वीं शताब्दी से मानी जा सकती है 18 सो 66 में शुरू किया गया टेबल टॉप गेम प्रथम फेंटेसी गेम माना जाता है जिसमें बोर्ड पर एक सिक्के को स्मार्ट में चला कर खेलों का अनुकरण किया जाता है इस तरह के खेलों का एक उल्लेखनीय उदाहरण एपीडीए भी था जिसे 1951 में जारी किया गया और इसमें एमएलबी( मेजर लीग बेसबॉल) खिलाड़ियों के कार्ड भी शामिल थे जिनसे आप फेंटेसी टीम बना सकते थे.

The beginning of fantasy games can be traced back to the 19th century. The table top game introduced in 18 to 66 is believed to be the first fantasy game in which games are simulated by smartly rolling a coin on the board. An example was the APDA, which was released in 1951 and included MLB (Major League Baseball) player cards from which you could build a fantasy team.

1961 में फेंटेसी बेसबॉल को जॉन बर्जसन द्वारा आईबीएम कंप्यूटर के लिए को एडिट किया गया था
 1950 के दशक में ऑक्लैंड केलिफोर्निया के व्यवसाई और ऑकलैंड रीडर्स विलफ्रेंड सीमित भागीदारों के साथ एक काल्पनिक गोल्फ खेल विकसित किया तथा जिसके अंत में प्राप्त स्कोर की तुलना कर खिलाड़ियों के हीटर और पिचर का मसौदा तैयार किया हालांकि यह प्रयोग आम जनता तक फैलने में विफल रहा .

Fantasy Baseball was edited for the IBM computer by John Bergson in 1961

In the 1950s, Auckland California businessman and Auckland Readers Wilfrid developed a fictional golf game with limited partners and compared the scores obtained at the end to draft players' heaters and pitchers, although this experiment failed to spread to the general public.

 

Here we are telling you about some of the world's leading fantasy game platforms:-

Yahoo:-

 यह पहला फेंटेसी प्लेटफार्म है जिसने हमें फुटबॉल लीग दी इसी वजह से यह बहुत सालों तक एक प्रचलित फेंटेसी खेल बना रहा इसके अधिक प्रचलित होने का एक कारण इसका user-friendly मंच भी रहा है

This is the first fantasy platform that gave us the football league that's why it remained a popular fantasy game for many years.One of the reasons for its popularity has been its user-friendly platform.

ESPN :-

इसको खेलों में एक प्रमुख नेता के रूप में जाना जाता रहा है जिसका प्रमुख खेल फुटबॉल था इसकी वेबसाइट प्रमुख रूप से खेलो और खेल से जुड़े हुए लोगों के लिए ही बनाई गई थी.

It has been recognized as a major sports leader whose main sport was football. Its website was created primarily for people involved in sports and sports.

NFL:-

फेंटेसी खेलों की इस दुनिया में यह कंपनी फेंटेसी खेलों को और भी बड़ा बना देती है क्योंकि यह हमें स्टेडियम जैसा अनुभव प्रदान करती है और इसी कारण यह फेंटेसी खेलों में एक प्रमुख मंच बन जाता है.

In this world of fantasy sports this company makes fantasy sports even bigger as it gives us stadium like experience and that is why it becomes a major platform in fantasy sports.

FanDuel:

यह मंच यूजर को एक अलग तरह का वीकली फेंटेसी खेल का अनुभव प्रदान करता है जिसमें वह सप्ताह के दिनों में खेले गए खेलों का सप्ताह के अंत में रिजल्ट प्राप्त करता है इसमें आप अपने देश के साथ विश्व के अन्य देशों के खिलाड़ियों के साथ भी कंपटीशन कर सकते हैं.

This platform provides a different kind of weekly fantasy sports experience to the user in which he gets the week-end results of the games played on the weekdays, in which you can compete with players from your country as well as other countries of the world. 

Dream 11:-



 

यह भारत की सबसे पुरानी और लोकप्रिय फेंटेसी गेमिंग प्लेटफार्म में से एक है जिसे 2008 में क्रिकेट फुटबॉल बास्केटबॉल हॉकी जैसे अनेकों गेमों के साथ शुरू किया गया, जहां आप अपने मनपसंद खिलाड़ियों को चुनकर अपना कौशल दिखा सकते हैं पूर्व क्रिकेट कैप्टन एमएस धोनी को इस का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया.

It is one of the oldest and most popular fantasy gaming platform in India which was launched in 2008 with many games like cricket football basketball hockey where you can choose your favorite players and show your skills to former cricket captain MS Dhoni. appointed brand ambassador.

MPL:

2018 में बेंगलुरु में स्थापित यह मंच बहुत ही कम समय में बहुत लोकप्रिय हो गया फेंटेसी खेलों के मंच होने के साथ-साथ यह आईपीएल की कुछ टीमों के प्रायोजक भी रहे.

Founded in Bangalore in 2018, the platform became very popular in a short span of time. Along with being a platform for fantasy sports, it has also been the sponsor of some IPL teams.

 

 


     भारत में dream11 और माय 11 सर्किल जैसे ऐप के आने के बाद फेंटेसी गेम्स का क्रेज आसमान छू गया है एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय फैंटेसी खेल उद्योग 2022 में 2.5 बिलीयन डॉलर सोने की उम्मीद है और यह आंकड़ा 2024 तक 3.7 बिलियन डॉलर होने की उम्मीद है.

 इसका व्यापार 1988 में केवल 500000 से शुरू होकर अकेले कनाडा और यूएसए में 56.8 मिलियन से अधिक हो गया, फेंटेसी खेलों में ऑनलाइन खेलने प्रायोजन, ड्राफ्ट पार्टियां, ब्रांड मार्केटिंग आदि सब होने की वजह से यह एक प्रभावी खेल बन गया है 

The craze of fantasy games has skyrocketed after the advent of apps like dream11 and my11 circle in India.

 According to a report, the Indian fantasy game industry is expected to gold $ 2.5 billion in 2022 and this figure is expected to be $ 3.7 billion by 2024.

यही कारण है कि आज विभिन्न स्थित कंपनियां मुनाफा कमाने के उद्देश्य से फेंटेसी खेलों में और उससे जुड़ी हुई कंपनियों में अपना पैसा लगाना शुरू कर चुकी है एक सर्वे में मिली जानकारी के अनुसार फेंटेसी खेलों में भाग लेने वाले लोगों का स्टेटिक्स कुछ इस प्रकार है:- 81% पुरुष, 19% महिला और 50% 18 से 34 वर्ष की उम्र के लोग हैं( औसत उम्र 37.7) वर्तमान में 18 प्लस आयु वर्ग के 19% लोग भाग ले रहे हैं.

This is the reason that today various based companies have started investing their money in fantasy sports and its related companies with the aim of making profit.

According to the information received in a survey, the statistics of people participating in fantasy sports are as follows:-

81% are male, 19% female and 50% are people between the ages of 18 and 34 (average age 37.7)

Currently 19% of people aged 18 plus are participating

 

चलिए अब हम आगे बढ़ते हैं और बात करते हैं कि भारत में वर्तमान में फेंटेसी स्पोर्ट्स पर क्या कानून है.  और क्या यह लीगल भी है या नहीं और अगर लीगल है तो किन पॉइंट्स के आधार पर भारतीय अदालतों ने इसे लीगल करार दिया है. 

Let us now go ahead and talk about what is the law on fantasy sports in India at present. And whether it is also legal or not and if it is legal, then on the basis of which points Indian courts have declared it legal.

 

इस तरह के एक व्यापार मॉडल की वैधता पर सवाल उठाया गया है और अदालतों ने माना है कि एक काल्पनिक खेल मुख्य रूप से 'कौशल का खेल' है और 'मौका का खेल' नहीं है, इसलिए जुआ के रूप में योग्य नहीं है।

 The legality of such a business model have been questioned and Courts have held that a fantasy sport is predominantly a ‘game of skill’ and not a ‘game of chance’ hence does not qualify as gambling. 


स्किल बनाम चांस की अवधारणा को समझने के लिए, हमें पहले जुए शब्द को समझना चाहिए। 

To understand the concept of Skill v. Chance:- 

gambling is-

पैसे का आदान-प्रदान या मूल्य का कुछ;

 एक भविष्य की घटना जो इस एक्सचेंज के परिणाम और इस घटना के परिणाम को निर्धारित करती है

, उस समय अज्ञात है जब एक शर्त लगाई जाती है;

 संभावना कम से कम आंशिक रूप से विनिमय के परिणाम को निर्धारित करती है

; केवल भाग न लेने से हानियों से बचा जा सकता है; हारने वालों की कीमत पर विजेता को लाभ होता है।

     The exchange of money or something of value;

    A future event that determines the result of this exchange and the outcome of this event is unknown at the time that a bet is made;

    Chance at least partly determines the outcome of the exchange;

    Losses can be avoided by simply not taking part;

    Winner gains at the expenses of the losers. 


Regulation of Fantasy Sports in India:-

'जुआ' शब्द को 'पैसे के मूल्य के लिए दांव लगाने या दांव लगाने की क्रिया' के रूप में समझा जाता है। सार्वजनिक जुआ अधिनियम की धारा 12 में प्रावधान है कि "मात्र कौशल का खेल" जुए के दायरे में नहीं आता है।


इसके अलावा 276वें विधि आयोग की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि कौशल आधारित खेलों को जुए के दायरे से छूट दी जा सकती है। हालांकि, 'कौशल के खेल' के रूप में अर्हता प्राप्त करने वाले फंतासी(fantasy) खेलों के संबंध में कोई विनिर्देश नहीं बनाया गया था।

The term ‘Gambling’ is understood as the ‘act of wagering or betting for money’s worth’. Section 12 of the Public Gambling Act provides that “game of mere skill” does not fall under the ambit of gambling.

Further the 276th Law Commission Report recommends that skill – based games may be exempted from the ambit of gambling. However, no specification was made with respect to fantasy games qualifying as a ‘game of skill’.

 

भारत में फेंटेसी स्पोर्ट्स की जो लोकप्रियता  लगातार बढ़ती जा रही है उससे इसका मार्केट कैप बहुत तेजी से बढ़ता जा रहा है. काफी कंपनियां इस रेस में अब जल्दी ही मैदान में उतरने को है. साथ ही metaverse के आने से भी फेंटेसी स्पोर्ट्स का रूप जल्दी ही बदल सकता है.

With the increasing popularity of fantasy sports in India, its market cap is increasing rapidly. Many companies are now going to enter the field in this race soon. Also, with the advent of the metaverse, the form of fantasy sports can change very soon.



 

वैसे अगर आप metaverse के बारे में और बेहतर इसे समझना चाहे तो हमारी ही वेबसाइट पर इसका बेहतरीन आर्टिकल आप सभी के लिए उपलब्ध है .

 आज हमने आप सभी को हमारे आर्टिकल के माध्यम से फेंटेसी स्पोर्ट्स के बारे में सरल शब्दों में समझाने का प्रयास किया है.
 अगर आप इससे जुड़ी कोई अन्य जानकारी भी हम से प्राप्त करना चाहते हैं क्या आप कोई अन्य आर्टिकल हम से प्राप्त करना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं. 

By the way, if you want to understand better about the metaverse, then its best article is available for all of you on our website.


Today we have tried to explain to you all about Fantasy Sports in simple words through our article.

If you want to get any other information related to this from us, do you want to get any other article from us, then definitely tell us in the comment box.

 

अगर आप इससे जुड़ी कोई अन्य जानकारी भी हम से प्राप्त करना चाहते हैं क्या आप कोई अन्य आर्टिकल हम से प्राप्त करना चाहते हैं तो कमेंट बॉक्स में हमें जरूर बताएं.

 हमारे आर्टिकल्स पर आपकी क्या राय है और अगर आपके कोई सुझाव हैं तो भी हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.

 हमारे सभी आर्टिकल्स समय से आपके पास पहुंचते रहे इसलिए हमें हमारे सभी सोशल मीडिया हैंडल्स पर फॉलो कीजिए.

If you want to get any other information related to this from us, do you want to get any other article from us, then definitely tell us in the comment box.


What is your opinion on our articles and if you have any suggestions, then do let us know in the comment box.

जल्द ही एक नए टॉपिक के साथ आप के पास वापस लौटेंगे.
 हमारे पाठकों के सुझावों के बाद हमने हमारे सभी आर्टिकल्स को अब हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में प्रस्तुत करने पर विचार किया है. आशा करते हैं कि इनसाइड प्रेस इंडिया का यह परिवर्तन आपको पसंद आया होगा.

Will be back to you soon with a new topic.

After suggestions from our readers, we have now considered presenting all our articles in both Hindi and English languages. Hope you liked this change of Inside Press India

 

 We will be back with more updates. 

Comment your suggestions or topics.

    Take Care.

 

                                                                             

                                     

 

 

 

 

 



 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Tuesday, February 15, 2022

ZOMATO business model (Explainer by IPI)

 

Zomato Business Model | Zomato Revenue Model

 

Zomato एक भारतीय रेस्तरां , Search और एक ऑनलाइन भोजन वितरण सेवा है। फूडटेक यूनिकॉर्न की स्थापना 2008 में दीपिंदर गोयल और पंकज चड्ढा ने की थी। ज़ोमैटो पूरे देश में प्रसिद्ध है और पिछले कुछ वर्षों में कई अंतरराष्ट्रीय बाजारों में उद्यम करने में भी कामयाब रहा है। यह वर्तमान में संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, ब्रासील, न्यूजीलैंड, सिंगापुर और संयुक्त राज्य अमेरिका और मध्य पूर्व कतर सहित 25 देशों के 10,000 शहरों में संचालित होता है।

 

आज, ज़ोमैटो ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग, रेस्तरां आरक्षण और लॉयल्टी प्रोग्राम, सलाहकार सेवाओं और बहुत कुछ पर ध्यान केंद्रित करता है। Zomato भी एक खाद्य खोज इंजन है जो Google खोज इंजन के समान काम करता है लेकिन भोजन और रेस्तरां की एक विस्तृत श्रृंखला का पता लगाने के लिए। कंपनी होम प्रोजेक्ट से विकसित होकर दुनिया के सबसे बड़े फूड एग्रीगेटर्स में से एक बन गई है। Zomato न केवल लोगों को बहुत ही संदर्भ में भोजन से जोड़ता है बल्कि एक स्थायी पारिस्थितिकी तंत्र को सक्षम करने के लिए रेस्तरां के साथ मिलकर काम करता है।

अपने अद्वितीय और टिकाऊ व्यापार और राजस्व मॉडल के साथ, कंपनी बाजार में एक शीर्ष खिलाड़ी बने रहने में सफल रही है। ज़ोमैटो सफल हो गया है क्योंकि सामर्थ्य, आसान पहुंच और वर्गीकरण जैसे कारकों ने सेवा के वर्षों से लोगों के बीच विश्वास बनाने में कामयाबी हासिल की है। Zomato अपने ग्राहकों की सेवा के लिए नए-नए तरीके खोजने पर काम कर रहा है।

 

Zomato - History


 

Zomato जिसे पहले Foodiebay के नाम से जाना जाता था, जुलाई 2008 में दो IIT स्नातकों दीपिंदर गोयल और पंकज चड्ढा द्वारा स्थापित किया गया था। यह विचार सबसे पहले दीपिंदर के दिमाग में आया जब उनके सहयोगियों ने लगातार अलग-अलग रेस्तरां के पेपर मेन्यू लीफलेट की मांग की, ताकि खाना ऑर्डर किया जा सके। तभी उन्होंने रेस्तरां के पेपर मेनू को एक डिजिटल ऐप में बदलने के बारे में सोचा, जो कहीं अधिक सुलभ और उपयोग में आसान है।

9 महीनों के मामले में, कंपनी दिल्ली में सबसे बड़ी रेस्तरां निर्देशिका बन गई और बाद में इसकी सफलता के कारण अन्य शहरों में इसका विस्तार हुआ। 2012 तक, Zomato ने ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, कतर, श्रीलंका, दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड, ब्राजील, आदि जैसे देशों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करना शुरू कर दिया था। इस कोर्स के दौरान, कंपनी को अपने अंतिम चार अक्षरों 'Foodiebay' के बाद से अपना नाम बदलना पड़ा। 'ईबे' के साथ मेल खाता है, किसी भी कानूनी मुद्दों से बचने के लिए कंपनी का नाम 2010 में ज़ोमैटो में बदल दिया गया था।

2015 में, कंपनी ने खाद्य वितरण व्यवसाय में प्रवेश किया और भारत में गोल्ड लॉन्च किया, जो एक सदस्यता उत्पाद था, जिसके तहत ग्राहकों को मानार्थ भोजन और पेय तक पहुंच प्राप्त होगी। Zomato ने Hyperpure भी लॉन्च किया, जो सीधे किसानों के साथ काम करता है ताकि खाद्य उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार हो और रेस्तरां को ताजा उपज की आपूर्ति हो। कंपनी अब अपने व्यवसाय को तीन प्रमुख बड़े स्तंभों के संयोजन के रूप में देखती है जो डिलीवरी, डाइनिंग आउट और सस्टेनेबिलिटी हैं|

 

Zomato - Business Model


      Image Credit: Apptunix

कंपनी के शुरुआती दौर में जोमैटो रेस्टोरेंट्स के मेन्यू को स्कैन करता था, साइट पर रखता था और मेन्यू लोगों को रिसीव करता था। यह अभी भी उसी फॉर्मूले का अनुसरण करता है, लेकिन इसके संचालन में अन्य सेवाओं को भी जोड़ा है। Zomato का बिजनेस मॉडल अन्य फूड डिलीवरी कंपनी जैसे Swiggy और Foodpanda से काफी अलग है। ज़ोमैटो के प्रमुख साझेदार UBER और London और पार्टनर्स हैं जो यूके में ज़ोमैटो को अपेक्षित समय सीमा के भीतर लॉन्च कर सकते हैं।

 

जबकि कंपनी का प्रमुख संसाधन यह है कि उसके पास 24 विभिन्न देशों के 10,000 शहरों में रेस्तरां का एक बड़ा डेटाबेस है। व्यवसाय मॉडल स्थानीय रेस्तरां खोज सेवाएं प्रदान करने और भोजन मेनू, संपर्कों पर डेटा एकत्र करने और अपने ग्राहकों को प्रासंगिक जानकारी प्रदान करने पर आधारित है। Zomato के मुख्य चैनल मोबाइल एप्लिकेशन और इसकी ऑनलाइन वेबसाइट हैं। कंपनी के लक्षित दर्शक वे उपयोगकर्ता हैं जो विभिन्न व्यंजनों और रेस्तरां के स्थानीय रेस्तरां खोजने की कोशिश करते हैं जो चाहते हैं कि उनका नाम बड़ी संख्या में लोगों तक पहुंचे।

 

Zomato उन ग्राहकों को भी पूरा करता है जो होम डिलीवरी पसंद करते हैं, यह डेटाबेस और मार्केट रिसर्च कंपनियों की मदद करता है। जबकि ऑनलाइन सेवा अनिवार्य रेटिंग तंत्र के साथ बनाई गई है। ज़ोमैटो के बिजनेस मॉडल ने विभिन्न रेस्तरां को शामिल करके और लोगों के लिए रेस्तरां ढूंढना, फीडबैक प्रदान करना, लिस्टिंग की जांच करना और उनकी पसंद के अनुसार उपलब्धता को सुविधाजनक बनाकर खाद्य व्यवसाय उद्योगों में क्रांति ला दी है।

 

Zomato - Revnue Model


 

 IMAGE CREDIT:- Economic Times

Zomato अपने आप में ग्राहकों को उत्पादों की पेशकश नहीं करता है लेकिन राजस्व बड़े पैमाने पर है। Zomato न केवल एक खाद्य व्यवसाय है, बल्कि यह विज्ञापन व्यवसाय में भी है। Zomato के बिजनेस के दो हिस्से होते हैं, एक है डिलीवरी बिजनेस और दूसरा ये है कि ये एडवरटाइजिंग बिजनेस में हैं। आज, Zomato के पास ऑनलाइन ऑर्डर करने के अलावा कई राजस्व चैनल हैं, जिनसे अधिकांश उपभोक्ता परिचित होंगे। राजस्व उत्पन्न करने के तरीके हैं:














Restaurant Listings and Advertising

Zomato की शुरुआत सबसे पहले एक रेस्टोरेंट सर्च और रेटिंग सर्विस के रूप में हुई थी। इससे मंच से जुड़ने वाले रेस्तरां से विज्ञापन राजस्व प्राप्त हुआ। उन्होंने इस सुविधा को भोजन वितरण और रेस्तरां आरक्षण के लिए आगे बढ़ाया, इसके लिए Zomato उन रेस्तरां से कमीशन लेता है जो फ़ीड पर रखना चाहते हैं। Zomato की कमाई का सबसे बड़ा जरिया विज्ञापन है। ज़ोमैटो के माध्यम से दर्शकों के एक बड़े वर्ग को बेहतर दृश्यता और अपील करने के लिए रेस्तरां साइट पर अपने बैनर का प्रचार कर सकते हैं।

 

Food Delivery

फूड डिलीवरी बिजनेस के जरिए जोमैटो रेस्टोरेंट्स से ऑर्डर के आधार पर कमीशन लेता है। कंपनी रेस्तरां के माध्यम से कमाती है जो प्रत्येक डिलीवरी के लिए एक कमीशन का भुगतान करते हैं, जिसे बाद में वितरण भागीदारों और कंपनी के बीच वितरित किया जाता है। हालांकि, भारी प्रतिस्पर्धा और गहरी छूट आदि प्रदान करने की आवश्यकता के कारण अन्य राजस्व धाराओं की तुलना में ऑनलाइन भोजन वितरण केवल आय का कम प्रतिशत योगदान देता है।

Subscription programs

Zomato के लिए राजस्व का अगला प्रमुख स्रोत सदस्यता शुल्क है। रेस्तरां मासिक शुल्क की एक निश्चित राशि का भुगतान करते हैं और बदले में, Zomato उन्हें विश्लेषणात्मक उपकरण प्रदान करता है। Zomato के पास बड़ी मात्रा में डेटाबेस हैं जो यह जानते हैं कि ग्राहक क्या खाना चाहता है, वह कहाँ खाना चाहता है, उपभोक्ता क्या खोज रहा है और यह सारी जानकारी कुकीज़ के माध्यम से जानता है। इसमें ज़ोमैटो ऑर्डर नामक एक टूल है और यह रेस्तरां को दिया जाता है, जो उन्हें उपभोक्ताओं की रुचि के बारे में जानने में मदद करता है। रेस्तरां तब इस उपकरण का उपयोग भोजन पर अपने छूट प्रस्तावों को फ्लैश करने के लिए करते हैं।

Live Events:-

 

Zomato ने रेस्तरां के साथ साझेदारी करके और सीमित इवेंट बनाकर इवेंट स्पेस में कदम रखा है। जिससे उन्होंने टिकटों की कीमत के जरिए बिक्री की। ज़ोमैटो ने हाल ही में ज़ोमालैंड को पेश किया, और 2019 में लाइव इवेंट मार्केट में प्रवेश किया। ज़ोमैटो उपयोगकर्ताओं को ज़ोमालैंड में भाग लेने के लिए एक प्रवेश शुल्क लेता है, जहाँ भोजन के अलावा, वे लाइव संगीत प्रदर्शन और अन्य कृत्यों को देख सकते हैं। Zomato ने 2018 में दिल्ली, पुणे और बेंगलुरु में एक एंटरटेनमेंट कार्निवाल का भी आयोजन किया, जिसमें 100 हजार से ज्यादा लोग शामिल हुए।

 

White Label Access:-

राजस्व का अगला स्रोत ऐप विकास है। Zomato ने Zomato Whitelabel नाम की सेवा शुरू की, जिसके तहत वे रेस्तरां को भोजन वितरण ऐप विकसित करने और अनुकूलित करने के लिए ऑफ़र देते हैं। यह परामर्श सेवाओं के लिए क्लाउड किचन और रेस्तरां के साथ भी काम करता है। Zomato कम से कम निश्चित लागत पर विस्तार के लिए स्थानों की पहचान करने में मदद करने के लिए चुनिंदा रेस्तरां ऑपरेटरों के साथ काम करता है, लेकिन उपयोगकर्ता के लिए बढ़े हुए विकल्पों के साथ। यह ऐसे रेस्तरां भागीदारों के लिए अपेक्षित लाइसेंस और परिचालन सक्षमता प्रदान करता है।

 

Zomato Kitchens:-

Zomato चुनिंदा रेस्तरां ऑपरेटरों को किचन इंफ्रास्ट्रक्चर सेवाएं भी प्रदान करता है, यह उद्यमियों के साथ विभिन्न अन्य लेबल के तहत Zomato किचन की स्थापना और संचालन के लिए काम करता है। यह रुपये के निवेश के साथ उद्यमी के फंड रेस्तरां को सही स्थान पर मदद करता है। 35 लाख। यह रुपये की सीमा में रिटर्न की पेशकश करने का भी दावा करता है। 2 लाख से रु. निवेशकों को प्रति माह 4 लाख और अब तक 180 से अधिक संबद्ध रसोई के साथ पूरा किया है।

 

Zomato Gold-

Zomato Gold एक प्रीमियम सब्सक्रिप्शन आधारित सेवा है जो Zomato द्वारा पेश की जाती है। यह 2018 में शुरू हुआ था और यह एक सशुल्क सेवा है जो गोल्ड सदस्यता वाले ग्राहकों को फॉर्म पार्टनर बार या रेस्तरां ऑर्डर करते समय मानार्थ भोजन और पेय प्राप्त करने की अनुमति देती है। हालांकि, गोल्ड सर्विस केवल ऑर्डर में भोजन करने के लिए लागू होती है और डिलीवरी के लिए उपलब्ध नहीं होती है और एक दिन में प्रत्येक भागीदार रेस्तरां में केवल एक बार इसका उपयोग किया जा सकता है। जब ग्राहक अपने पार्टनर रेस्तरां में जाते हैं तो Zomato Gold भोजन पर 1 + 1 या पेय पर 2 + 2 प्रदान करता है।

 

Zomato - Value Proposition

 

Zomato का बिजनेस मॉडल अपने ग्राहकों को कई तरह के मूल्य प्रदान करता है। Zomato का रेवेन्यू मॉडल कुछ नया और अतिरिक्त बनाने पर केंद्रित रहा है जो ग्राहकों को कहीं और नहीं मिल सकता है। Zomato रात्रिभोज के लिए वन स्टॉप शॉप है और रेस्तरां को खुद को अलग करने का एक तरीका प्रदान करता है। रेस्टोरेंट्स के पास लिस्टिंग को अपडेट रखने, आलोचनाओं का सकारात्मक जवाब देने और अपनी कार्रवाई के प्रति जवाबदेह होने के द्वारा भेदभाव पैदा करने का विकल्प होता है।


Zomato अपने व्यवसाय के संचालन को बनाए रखने के लिए अपने ग्राहकों के लिए मूल्य बनाने में विश्वास करता है। कंपनी कुशल प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग प्रदान करके ग्राहकों और रेस्तरां के बीच की खाई को पाटने की कोशिश करती है, जिससे उन्हें इसके वितरण समय को कम करने में मदद मिली|



 

 We will be back with more updates. 

Comment your suggestions or topics.

    

                                                                             

                                                                         

 

 

 

 

 

 

 

 

 

Sunday, February 13, 2022

ABG शिपयार्ड Case:बैंकिंग इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला 22842 Crore rupees;

 


ABG शिपयार्ड ने किया 22842 हजार करोड़ रुपये का फ्रॉड


एजेंसी द्वारा दर्ज बैंक धोखाधड़ी का यह अब तक का सबसे बड़ा मामला है।

 

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने गुजरात स्थित एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड, उसके निदेशकों और अन्य के खिलाफ कथित तौर पर 28 बैंकों के एक संघ को 22,842 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाने के लिए मामला दर्ज किया है। एजेंसी द्वारा दर्ज बैंक धोखाधड़ी का यह अब तक का सबसे बड़ा मामला है।

 

“सूरत, भरूच, मुंबई और अन्य स्थानों में आरोपी व्यक्तियों के 13 परिसरों की तलाशी ली गई है। आगे की कानूनी कार्यवाही शुरू की जा रही है, ”सीबीआई के एक अधिकारी ने कहा।


कथित धोखाधड़ी अप्रैल 2012 से जुलाई 2017 तक ऋण खाते के लेनदेन के फोरेंसिक ऑडिट के दौरान सामने आई। बैंक द्वारा दर्ज की गई शिकायत के अनुसार, खाते को जून 2019 में धोखाधड़ी घोषित किया गया था। खाता गैर-निष्पादित संपत्ति बन गया था। जुलाई 2016 30 नवंबर 2013 से प्रभावी

 

प्राथमिकी के अनुसार, फोरेंसिक ऑडिट में धन के डायवर्जन, हेराफेरी और आपराधिक विश्वासघात का खुलासा हुआ। कथित तौर पर इस फंड का इस्तेमाल अघोषित उद्देश्यों के लिए किया गया था, सिंगापुर स्थित एक सहायक कंपनी के माध्यम से निवेश किया गया था और संबंधित पक्षों को सैकड़ों करोड़ का भुगतान किया गया था। संपत्तियां भी एबीजी शिपयार्ड द्वारा उपलब्ध कराए गए धन से खरीदी गईं।

 

ऑडिटर को सर्कुलर ट्रांजैक्शन के सबूत भी मिले। प्राथमिकी में कहा गया है कि क्रेडिट सुविधाओं के खिलाफ कंपनी द्वारा प्रदान की गई प्रतिभूतियों का कुल उचित बाजार मूल्य $ 8,608.35 करोड़ था।


एबीजी समूह की प्रमुख कंपनी एबीजी शिपयार्ड जहाज निर्माण और मरम्मत के कारोबार में है। श्री ऋषि अग्रवाल द्वारा प्रचारित, यह भारतीय जहाज निर्माण उद्योग में एक प्रमुख खिलाड़ी है। इसके शिपयार्ड गुजरात के दहेज और सूरत में स्थित हैं। कंपनी के पास सूरत शिपयार्ड में 18,000 डेड वेट टनेज तक और दहेज यूनिट में 1.20 लाख डेड वेट टनेज तक जहाज बनाने की क्षमता है।




कंपनी ने पिछले 16 वर्षों में निर्यात बाजार के लिए 46 जहाजों सहित 165 से अधिक जहाजों का निर्माण किया है। इनमें न्यूजप्रिंट कैरियर्स, सेल्फ-डिस्चार्जिंग और लोडिंग बल्क सीमेंट कैरियर्स, फ्लोटिंग क्रेन्स, इंटरसेप्टर बोट, डायनेमिक पोजिशनिंग डाइविंग सपोर्ट वेसल, पुशर टग्स और भारत और विदेशों में अग्रणी कंपनियों के लिए फ्लोटिला जैसे विशेष जहाज शामिल थे। जहाजों को सभी अंतरराष्ट्रीय वर्गीकरण समितियों की श्रेणी की मंजूरी मिल गई है।

 

प्राथमिकी में कहा गया है कि वैश्विक संकट ने माल की मांग और कीमतों में गिरावट और बाद में कार्गो मांग में गिरावट के कारण शिपिंग उद्योग को प्रभावित किया। कुछ जहाजों/जहाजों के अनुबंधों को रद्द करने के परिणामस्वरूप इन्वेंट्री का ढेर लग गया। इसके परिणामस्वरूप कार्यशील पूंजी की कमी हुई और परिचालन चक्र में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे चलनिधि/वित्तीय समस्या और बढ़ गई।


वाणिज्यिक जहाजों की कोई मांग नहीं थी क्योंकि उद्योग 2015 में भी मंदी के दौर से गुजर रहा था। इसके अलावा, 2015 में कोई नया रक्षा आदेश जारी नहीं किया गया था। कंपनी को कॉर्पोरेट ऋण पुनर्गठन में परिकल्पित मील के पत्थर हासिल करने में मुश्किल हो रही थी और इसलिए , यह नियत तारीखों पर ब्याज और किश्तों का भुगतान करने में असमर्थ था।




कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया के लिए आईसीआईसीआई बैंक द्वारा कंपनी को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी), अहमदाबाद के पास भेजा गया था। तदनुसार, एक समाधान पेशेवर भी नियुक्त किया गया था। पेशेवर ने पहले एनसीएलटी के समक्ष एक आवेदन दायर किया था जिसमें कंपनी द्वारा तरजीही / कम मूल्य वाले लेनदेन और धोखाधड़ी / गलत व्यापार का आरोप लगाया गया था, जिसकी पुष्टि ट्रिब्यूनल ने 2019 में की थी, जैसा कि आरोप लगाया गया था।

 

रिपोर्ट्स के मुताबिक, 22-बैंक कंसोर्टियम में, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई), आईसीआईसीआई बैंक और आईडीबीआई बैंक के पास शिपिंग कंपनी में 50 प्रतिशत से अधिक का एक्सपोजर था। एसबीआई ने पहले खाते को 'धोखाधड़ी' के रूप में वर्गीकृत किया, उसके बाद आईसीआईसीआई बैंक और फिर आईडीबीआई बैंक।

Here are the banks; FULL DETAILS


 We will be back with more updates. 

Comment your suggestions or topics.

    Take Care.

 


                                                                               

                                                                            

 

Friday, February 11, 2022

BOAT IPO (Explainer series) Boat company business model

 


 

BoAt is an Indian based consumer electronics brand established in 2015 that markets earphones, headphones stereos, travel chargers and premium rugged cables. Imagine Marketing Services Private Limited, which does business as BoAt, was incorporated in November 2013 by co-founders Sameer Ashok Mehta and Aman Gupta.

 (Imagine Marketing) - parent company of audio wear maker "BoAt" filed for its IPO last week. And in a sea of Indian software or tech startups, a hardware company going public is a big deal. So in today’s IPI EXPLAINER, we see whether the company has wind in its sails or if it’s running into choppy waters.


 

What are the benefits of selling on Amazon?”

If you ask Google this question, it’ll spit out 10.4 crore results.

“What are the dangers of selling on Amazon?”

That will give you a whopping 16.8 crore results.

Yikes!!! If you take everything on the internet at face value, you’ll probably think that the risks of selling on an e-commerce platform like Amazon far outweigh the benefits associated with it.

But homegrown audio and wearables maker "boAt" doesn’t think so. In fact, for large parts of their existence they’ve almost exclusively dealt with Amazon and they have thrived in the process.

By March 2020, their sales hit ₹600 crores, with profits hovering at a cool ₹50 crore. A couple of years ago boAt upped its relationship with Flipkart as well by listing exclusives on its platform. And in just the first half of 2021 (April to September), it grossed ₹1500 crores. Its profits hit triple digits — ₹118 crores — for the first time ever.

 

boAt is a real unicorn. And we mean it in a very literal sense — “something that is highly desirable but difficult to find or obtain.”

A 6-year old homegrown hardware startup that holds immense growth potential and is highly profitable.

So how did it get here?

Well, apart from the obvious merits of quality, boAt’s pricing and positioning aim to reduce cognitive dissonance. It’s the thing you feel when your ideas, beliefs or behaviours contradict each other. And if you have doubts about your purchase and its ability to provide maximum value for the best price, there is a high chance that you will avoid making a similar purchase again.


Imagine buying a Portronics headphone and then finding out you could have had a boAt by paying a slight premium — or sporting a JBL and then seeing a boAt sell at a small discount. It's this feeling of possible regret that the human brain tries to avoid whilst making a purchase and boAt’s brand image is tailor-made to reduce the internal conflict within you. A Portronics is affordable, a JBL — Premiumish. boAt, for the lack of a better term, is both.

There’s also the marketing element. Co-founder Aman Gupta had spent years handling sales at Harman International — the company behind audio brands like JBL, Harman, and AKG. And it’s safe to say he knows a thing or two about pitching audio products.

 

There’s also the aspirational aspect. boAt has partnered with a slew of cricket stars and IPL teams to build a community of what they call “boAtheads.” It’s worked out quite well for them. And finally, it’s a homegrown brand, a truly local company and that counts for something, no?

However, not everything is hunky-dory.

For one, their dependence on Amazon and Flipkart could come to bite them back. They sell 8 out of 10 products through these intermediaries and any change in their relationship could have an adverse impact on the company's financials. 

 

Also, it’s imperative to note that the company doesn’t make anything in-house. Instead, it procures them from manufacturers — mostly situated outside India. According to reports, about 89% of all products are made in China. And that presents some interesting challenges. For one, our relationship with China is a bit frosty. A protracted trade war can affect operations. And even if this weren’t problematic per se, it’s never a good idea to be this deeply reliant on one country. If the Chinese Premier decides to institute policies that adversely affect manufacturers in the country, boAt could feel the pinch as well.

Which explains why they’ve made a conscious decision to diversify. The company is now trying to work with manufacturers in Vietnam and India (Dixon Technologies) in a bid to reduce the overreliance on China. 


 

 

But perhaps the biggest issue with boAt is pricing. The IPO price to be specific. They’re asking for a lot of money and not everybody is convinced that there’s a bargain on the offering here.

  1. For starters, the company’s financials are decent but it isn’t extraordinary. Take for instance boAt’s financial statements. It will tell you that they’ve witnessed enviable growth so far, but it also points out that they have some issues with cash flow management.

  2. Is the massive spurt in sales wholly due to the pandemic? And are growth rates going to sustain moving ahead? It’s a question that needs a bit of deliberation.

  3. And what about the jump in valuation? In January 2021 boAt raised $100 million from PE firm Warburg Pincus at a valuation of $300 million. In January 2022, it’s seeking a valuation of nearly $2 billion. A 7x jump in just a year. That’s…. interesting.

  4. Finally, companies that have gone on to list at a premium — The likes of Zomato and Nykaa for instance haven’t done all that well since they debuted on Dalal Street. So you could argue that boAt may also have to deal with similar sentiments.

So yeah, boAt’s story is hugely impressive no doubt, but is it asking investors to pay far too much?

Well, how about you let us know?

 

  Take Care.

 


                                      

                                         

 

 

 

How digital rupee will be different from rupee notes?

 -DIGITAL RUPEE vs RUPEE NOTES



 

 

भारत के केंद्रीय बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से अपनी डिजिटल मुद्रा को शुरू करने में कोई "जल्दबाज़ी" नहीं होगी। यह सुकून देने वाला है। कई केंद्रीय बैंक, जिनमें सबसे अधिक शामिल हैं उनमें से शक्तिशाली, यूएस फेडरल रिजर्व, अभी तक डिजिटल पूल में अपने पैर की उंगलियों को डुबाना बाकी है। इसलिए, यह समझ में आता है कि आरबीआई को 2023 तक केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा की शुरूआत की बजट घोषणा को लागू करने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

 

 

वैश्विक स्तर की भुगतान प्रणाली और पिछले कुछ वर्षों में निर्मित बुनियादी ढांचे के कारण भारत में डिजिटल भुगतान और लेनदेन में उछाल ने सरकार और आरबीआई को सेंट्रल बैंक डिजिटल मुद्रा या सीबीडीसी के मोर्चे पर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया हो सकता है। ऐसे में यह पूछना स्वाभाविक है कि सीबीडीसी कैसे अलग होगा जब डिजिटल वॉलेट, यूपीआई, कार्ड और अन्य प्लेटफॉर्म के जरिए एक रुपये तक का डिजिटल लेनदेन किया जा सकता है। वर्तमान में, आरबीआई जैसे केंद्रीय बैंक नोटों और सिक्कों के माध्यम से मुद्रा को भौतिक रूप में जारी करते हैं। ये सभी सरकारी प्रतिभूतियों या सोने द्वारा समर्थित हैं, जो उपयोगकर्ताओं या जनता को सुरक्षा और सुरक्षा प्रदान करते हैं और आसान हस्तांतरणीयता प्रदान करते हैं।

 

 

भुगतान और लेनदेन के डिजिटल तरीके भी आसान प्रदान करते हैं। लेकिन अंतर यह है कि जब कोई दुकानदार किसी ग्राहक के साथ लेन-देन करता है, तो बैक-एंड पर एक निपटान प्रक्रिया शामिल होती है। वह समझौता थोड़े अंतराल के साथ होता है। लेकिन एक डिजिटल मुद्रा लेनदेन में, जैसे कि आपके और स्थानीय स्ट्रीट वेंडर के बीच, यह आपके डिजिटल खाते तक पहुँचने के तुरंत बाद होगा यदि केंद्रीय बैंक एक या बैंकों या अन्य वित्तीय क्षेत्र की फर्मों के माध्यम से ऐसे डिजिटल खाते या खाता खोलने के लिए अधिकृत है। . अन्य डिजिटल भुगतान मोड के मामले में ऐसा कोई समझौता नहीं है। यह मानता है कि ग्राहक और विक्रेता दोनों के पास वर्चुअल खाता है। CBDC आपके बटुए में करेंसी नोट या सिक्के ले जाने की आवश्यकता को समाप्त करता है। ब्लॉकचेन तकनीक का उपयोग करके पूरी प्रक्रिया को संभव बनाया जाएगा। एटीएम की आवश्यकता समय के साथ कम हो सकती है।


 

 

सैद्धांतिक रूप से, लेन-देन की यह गति आर्थिक गतिविधि या धन आपूर्ति की गति को और बढ़ा सकती है - एक मीट्रिक केंद्रीय बैंकर और मौद्रिक अर्थशास्त्री देखते हैं।


तो, इसमें व्यक्तियों, परिवारों या व्यवसायों के लिए क्या है? एक के लिए सुविधा। इसके अलावा, अधिक तरलता और सुरक्षा और आराम कि भौतिक मुद्रा की तरह, डिजिटल मुद्रा केंद्रीय बैंक द्वारा समर्थित है। व्यवसायों के लिए, यह तेजी से भुगतान की पेशकश कर सकता है और शायद बहुत कम दर पर अगर आरबीआई यह सुनिश्चित करने में सक्षम है कि बुनियादी ढांचे की लागत प्रतिस्पर्धी है।

 

लेकिन मोटे तौर पर, एक डिजिटल मुद्रा एक विकल्प के रूप में होती है - जैसे डिजिटल वॉलेट, क्रेडिट या डेबिट कार्ड, तत्काल भुगतान सेवाएं या इलेक्ट्रॉनिक फंड ट्रांसफर। इसलिए भौतिक मुद्रा गायब नहीं होगी या जल्दी में बदली नहीं जाएगी, खासकर ऐसे देश में जहां लाखों बैंक रहित और कम वित्तीय साक्षरता या जागरूकता है। भविष्य में, आरबीआई और अन्य केंद्रीय बैंक डिजिटल रुपये के साथ-साथ भौतिक मुद्रा प्रदान करना जारी रखेंगे।

 

आरबीआई के लिए, इसकी बैलेंस शीट डिजिटल मुद्रा के साथ एक अलग रूप को स्पोर्ट नहीं करेगी, जैसे कि भौतिक मुद्रा को इसकी देनदारियों के हिस्से के रूप में माना जाता है। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर डिजिटल मुद्रा में तेजी आती है या वॉल्यूम बढ़ता है, तो केंद्रीय बैंक का बोझ कम होगा। यह न केवल आरबीआई के लिए बल्कि देश भर में करेंसी चेस्ट को बनाए रखने वाले बैंकों के लिए भी देश भर में मुद्रा वितरण में शामिल चुनौतियों और लागत के कारण है।


डिजिटल मुद्रा से उत्पन्न होने वाले जोखिम भी हैं। उपभोक्ताओं की गोपनीयता निश्चित रूप से एक चिंता का विषय है, यह देखते हुए कि बैंक नोटों के मामले में, आभासी खातों को ट्रैक किया जा सकता है - कुछ ऐसा जिसे आरबीआई गवर्नर दास ने भी गुरुवार को स्वीकार किया। तो डिजिटल दुनिया में हैकिंग, साइबर क्राइम का खतरा है। इसलिए आश्चर्य की बात नहीं है कि अधिकांश केंद्रीय बैंक इन्हें संबोधित करने और सही संतुलन खोजने पर काम कर रहे हैं। और भारत में, जागरूकता, शिक्षा और बेहतर डिजिटल कनेक्टिविटी पैदा करने की अतिरिक्त चुनौती।

 

अपने वैश्विक साथियों की तरह, आरबीआई भी पायलट परियोजनाओं के साथ अच्छी तरह से शुरुआत कर सकता है और यह आकलन कर सकता है कि क्या लाभ अपने सीबीडीसी का अनावरण करने से पहले जोखिम से अधिक है - शायद वित्त मंत्री द्वारा घोषित 2023 के रोलआउट की तारीख से बहुत बाद में।

 अब यह देखना होगा कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया किस तरह से इस डिजिटल रूपी का नियमन करता है. और क्या खास बातें रहती है इस डिजिटल मनी में.


 

  

 Will be back with more topics. stay tuned

Comment your suggestions or topics.

    Take Care.

 

                           

Karnataka's hijab controversy explained (कर्नाटक के हिजाब विवाद की व्याख्या) IN HINDI

 

 
कर्नाटक में हिजाब विवाद में, राज्य सरकार अपने तर्क पर अड़ी हुई है कि कॉलेजों में एक ड्रेस कोड का पालन किया जाना चाहिए, जबकि मुस्लिम छात्रों ने अपने धर्म को मानने के अपने मौलिक अधिकार के उल्लंघन का दावा किया है।

 

How did it start?

उडुपी में गवर्नमेंट पीयू कॉलेज फॉर गर्ल्स की छह छात्राओं को हिजाब पहनकर कक्षाओं में जाने की अनुमति नहीं थी।

छात्रों ने 31 दिसंबर, 2021 को यह दावा करते हुए विरोध किया कि कॉलेज उन्हें पिछले 15 दिनों से कक्षाओं में शामिल नहीं होने दे रहा है


उडुपी के भाजपा विधायक रघुपति भट, जो कॉलेज की विकास समिति के प्रमुख हैं, ने माता-पिता और अन्य हितधारकों के साथ बैठक की।

 

उन्होंने छात्रों से कक्षा में कॉलेज के ड्रेस कोड का पालन करने को कहा। छह छात्रों ने कक्षा से दूर रहने का फैसला किया।


छात्रों ने कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की, और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से भी संपर्क किया।

 

इस घटना के बाद, कुंडापुर के गवर्नमेंट प्री यूनिवर्सिटी कॉलेज में लड़कों का एक समूह हिजाब पहनकर कक्षाओं में भाग लेने वाली कुछ लड़कियों के विरोध में भगवा शॉल पहने कॉलेज गया।

 

कुंडापुरा के विधायक हलदी श्रीनिवास शेट्टी ने अभिभावकों के साथ बैठक की और छात्रों से कॉलेज के ड्रेस कोड का पालन करने के लिए कहा जब तक कि सरकार इस मुद्दे पर अंतिम निर्णय नहीं ले लेती।

 

विधायक ने कहा कि पिछले करीब पांच दिनों से कॉलेज की कुछ छात्राएं हिजाब पहनकर क्लास में आ रही हैं.


दूसरी ओर, छात्राओं ने तर्क दिया है कि हिजाब पर रोक लगाने के लिए 'ड्रेस कोड में अचानक बदलाव' के बाद उन्हें कॉलेज से बाहर रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है।

 

हिजाब पहनने वाली लड़कियों का मुकाबला करने के लिए, कई हिंदू लड़के भगवा शॉल पहन कर आ रहे हैं, लेकिन उन्हें भी कक्षाओं में प्रवेश करने से रोक दिया गया है।


तटीय कर्नाटक के उडुपी जिले के कई कॉलेजों में ऐसे मामले सामने आए हैं।

 

चिक्कमगलुरु में उस समय विवाद ने एक नया मोड़ ले लिया जब आईडीएसजी गवर्नमेंट फर्स्ट ग्रेड कॉलेज के छात्र नीली शॉल पहनकर पहुंचे। उन्होंने जय भीम के नारे लगाए और मुस्लिम लड़कियों के समर्थन में आवाज उठाई। उन्होंने कहा कि वे धार्मिक अभ्यास के तहत कॉलेजों में हिजाब पहनने के समर्थन में हैं।

  What is Government's stand?

 

कर्नाटक सरकार ने एक आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि छात्रों को कॉलेज विकास समितियों द्वारा निर्धारित वर्दी/ड्रेस कोड का पालन करना होगा।

 

प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा मंत्री बी.सी. नागेश ने कहा कि कर्नाटक शैक्षिक अधिनियम 2013 और 2018 के तहत बनाए गए नियमों ने शैक्षणिक संस्थानों को स्कूल / पीयू कॉलेज के छात्रों के लिए वर्दी निर्धारित करने का अधिकार दिया है।

विभाग ने इन नियमों के आधार पर एक सर्कुलर जारी किया है और छात्रों से अपील की है कि जब तक इस मामले में हाई कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता, तब तक वे कॉलेजों द्वारा निर्धारित यूनिफॉर्म नियमों का पालन करें.

 

हालांकि कॉलेजों में वर्दी अनिवार्य नहीं है, कॉलेज विकास समितियां, अक्सर स्थानीय विधायकों की अध्यक्षता में, उडुपी और अन्य जिलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने सहित एक ड्रेस कोड पर जोर देती रही हैं।

   

 

बुधवार को, कर्नाटक उच्च न्यायालय में मामले की सुनवाई करने वाली एकल न्यायाधीश पीठ ने मामले को मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी को एक बड़ी पीठ स्थापित करने के लिए भेजा क्योंकि यह मामला "व्यापक मुद्दों" को सामने लाता है।


राज्य सरकार और कॉलेज अपने इस तर्क पर अड़े हैं कि एक ड्रेस कोड का पालन किया जाना चाहिए और धार्मिक कपड़ों के लिए एक शैक्षणिक संस्थान में जगह नहीं है, जो "समानता और एकरूपता" पर निर्भर करता है।

 

सरकार ने तर्क दिया है कि कपड़ों के माध्यम से धार्मिक प्रतीकवाद के खुले तौर पर प्रदर्शन की अनुमति देने से "एक छात्र को एक अलग पहचान प्राप्त होगी" जो "अकादमिक वातावरण के लिए अनुकूल नहीं होगा"। राज्य ने "सार्वजनिक व्यवस्था की रक्षा" के साधन के रूप में अपने फैसले का बचाव किया है।

 

दूसरी ओर, याचिकाकर्ताओं ने अपने धर्म को मानने के अपने मौलिक अधिकार और स्वतंत्रता और गरिमा के अधिकार के उल्लंघन का दावा किया है। याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि संविधान सभी को अपने धर्म का पालन करने का मौलिक अधिकार देता है, और छात्रों को उनकी पोशाक के कारण कक्षाओं में भाग लेने से रोकना इन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।

 

What do experts say?

 

इंडिया टुडे से बात करते हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि कर्नाटक में हिजाब पर विवाद "चुनावों के दौरान जानबूझकर उठाया गया राजनीतिक मुद्दा" था।


“सरकार को किसी व्यक्ति द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों में हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। यह प्रत्येक व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पसंद है। यहां तक ​​​​कि अगर कोई ड्रेस कोड है, तो हिजाब या हेडस्कार्फ़ एक ही रंग और कपड़े का हो सकता है, ताकि ड्रेस कोड का उल्लंघन न हो, ”दवे ने कहा।

वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने यह भी कहा कि प्रतिबंध ने संविधान के अनुच्छेद 25 और 29 के तहत निहित धर्म को मानने और मानने के अधिकारों का उल्लंघन किया है। “सार्वजनिक व्यवस्था की खातिर प्रतिबंधों का तर्क यहाँ नहीं उठ सकता। सार्वजनिक व्यवस्था को अपराध या सार्वजनिक अव्यवस्था के कारण परिभाषित किया जाना चाहिए। यह एक हेडस्कार्फ़ से कैसे प्रभावित होता है? अदालतों ने माना है कि सिखों के लिए कृपाण ले जाना और मुसलमानों के लिए सिर ढंकना एक आवश्यक धार्मिक प्रथा है, ”सिंह ने कहा।

 

 Will be back with more topics. stay tuned

Comment your suggestions or topics.

    Take Care.

 

                                 

 

 

Semiconductor issue in India (Elplainer by IPI)


In today's Explainer we see how the Indian government intends to make the country a global semiconductor manufacturing hub.

 The government has a tough job at hand. They have to create more jobs, invest in this country’s future and grow the economy while at it. And when you’re in the middle of a pandemic, this becomes exponentially harder. And it seems that there is a collective recognition now that they can’t do it alone. They need the private sector to join hands. However, for corporates looking to turn a profit, this could be easier saidThey are strapped for cash and investing billions at this juncture may still be a tall order. So the government needs to do something to get them excited. They need to incentivize them to set up shop and drop big money to aid the growth agenda. than done.

 They are strapped for cash and investing billions at this juncture may still be a tall order. So the government needs to do something to get them excited. They need to incentivize them to set up shop and drop big money to aid the growth agenda.


 What do these incentives look like?

 Well, they could be tax rebates, exemptions on import and export duties, easier land-acquisition terms or subsidies. In return the government expects them to produce in India or as we like to call it here “Make in India.” In fact, most incentive structures are tied to production targets. They are called Production Linked Incentive Schemes (PLIs).

 

So far, the Indian government has introduced PLI schemes for a whole host of industries such as the auto sector, white goods industries, electronics and phone manufacturing. In total, thirteen PLI schemes have already been put in place, and they are expected to cumulatively add up to investments of around $30 billion by 2025. The PLI schemes for mobile phones, in particular, have been a crucial factor in consolidating India’s place as the world’s second-largest mobile phone manufacturer, and boosting India’s mobile phone exports by 250%.

However, despite all the progress, we still don’t make the big money parts — the semiconductor chips. It’s been a sore point of sorts and the government has been trying to fix it.

 

And to this end, they recently cleared a $10 billion PLI scheme to attract global chipmakers to set up semiconductor plants in the country. That’s right! India wants to be a semiconductor manufacturing hub and they hope to create some 35,000 specialised high-end jobs, 100,000 indirect employment opportunities and attract investments worth $23 Billion in the process.

And unlike previous PLI schemes where the government offered incentives on incremental sales, this one is expected to offset the high costs of setting up a semiconductor factory. The government is expected to bear as much as 50% of the costs associated with setting up a fabricator and it could go a long way in alleviating some of the uncertainty involved in investing in such projects.


 

 

Now there is still some confusion on whether this will be a straight cash infusion or include some other kinds of incentives we spoke of earlier. However, both industry incumbents and outsiders have hailed this announcement as a gamechanger.

Having said that, however, incentives alone won’t help us become a manufacturing hub. If you’ve been reading our newsletter, you’ll know that manufacturing semiconductors is no walk in the park. Apart from the obvious high costs, companies have to take into account the infrastructure challenges.

 For instance, do you get an uninterrupted power supply? If not, then you can’t set up the plant. Next, you’ll need access to lots of water. Not just any water, but millions of litres of ultra-pure water. In fact, even a basic fabrication unit is known to consume more than 20 million litres of water per day. And sourcing this water has turned out to be China’s Achilles heel in scaling production. Even Taiwan has had trouble with this thing for a while now. Finally, you also have to make sure that you set up the plant at a pristine location. If you can’t get yourself a clean workspace, then the plant is a no go once again.

 In fact back in 2017, when India last tried to woo global semiconductor companies, it failed on these accounts. Last time around we offered to waive off customs duties on the import of machinery required for chip manufacturing. But clearly, that wasn’t enough, and there weren’t many takers. However, a lot has changed since then. The world is reeling through a crippling semiconductor shortage and it desperately needs alternatives. And if India can position itself right, by offering the right kind of incentives alongside the other bits, maybe this time will be different.